AN UNBIASED VIEW OF प्राचीन भारत का इतिहास

An Unbiased View of प्राचीन भारत का इतिहास

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तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) की प्रशंसा कई इतिहासकारों ने की है, और कुछ ने तो इसे भारत के वास्तविक इतिहास का एकमात्र स्रोत बताया है। लेनपूल के अनुसार, ‘तुजुक-ए-बाबरी ही केवल एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें दी गई सामग्री की पुष्टि के लिए अन्य प्रमाणों की विशेष आवश्यकता नहीं है।’ बाबरनामा में न केवल बाबर के जीवन की घटनाओं का here विवरण मिलता है, बल्कि इससे उसके चरित्र, व्यक्तित्व, ज्ञान, क्षमता और कमजोरी की भी जानकारी होती है।

वास्तव में, बरनी ने अपनी पुस्तक को वहाँ से लिखना शुरु किया था, जहाँ से मिनहाज-उस-सिराज ने तबकाते-ए-नासिरी को छोड दिया था। इस प्रकार तारीख-ए-फिरोजशाही संभवतः तबकात-ए-नासिरी का उत्तर भाग है। यद्यपि इस ग्रंथ में तिथि संबंधी दोष और धार्मिक पूर्वाग्रह है, किंतु अपने दोषों के बावजूद यह एक अमूल्य ऐतिहासिक कृति है। तारीख-ए-फिरोजशाही का हिंदी अनुवाद डॉ. रिजवी ने किया है।

जापानमा दशकौँअघि जबरजस्ती बन्ध्याकरण गरिएका १६ हजार जनाले क्षतिपूर्ति पाउने

प्राचीन काल में इजिप्ट के राजा फ़िरौन के समय इसलिए हुआ था टिड्डियों का अटैक

हिन्दुस्तान स्वर्ग के बगीचे के समान है।

प्राचीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत बहुविकल्पीय प्रश्न

चंगेज खान कौन था? मुस्लिम या बौद्ध या कुछ और? कितनी थीं उसकी पत्नियां?

आलमगीरनामा (मिर्जा मुहम्मद काजिम शिराजी)

पुनर्जागरण एक फ्रेंच शब्द (रेनेसी) है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘फिर से जागना’ इसे ‘नया जन्म अथवा ‘पुनर्जन्म’ भी कह सकते हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे मानव समाज की बौद्धिक चेतना और तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना ज्यादा उचित होगा। प्राचीन यूनान और रोमन युग में यूरोप में सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कर्ष हुआ था। परन्तु मध्यकाल में यूरोपवासियों पर चर्च तथा सामान्तों का इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया था कि लोगों की स्वतंत्र चिन्तन-शक्ति तथा बौद्धिक चेतना ही लुप्त हो गई। लैटिन तथा यूनानी भाषाओं को लगभग भुला दिया गया। शिक्षा का प्रसार रुक गया था। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप सदियों तक गहन अन्धकार में दबा रहा। ईश्वर चर्च और धर्म मे के प्रति यूरोपवासियों की आस्था चरम बिन्दु पर पहुँच गई थी। धर्मशास्त्रों में जो कुछ सच्चा झूठा लिखा हुआ अथवा चर्च के प्रतिनिधि जो कुछ बतलाते थे, उसे पूर्ण सत्य मानना पड़ता था। विरोध करने पर मृत्युदण्ड दिया जाता था। इस प्रकार लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव कायम था। चर्च धर्मग्रन्थ के स्वतन्त्र चिन्तन और बौद्धिक विश्लेषण का विरोधी था। सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में भी चर्च और सामन्त व्यवस्था लोगों को जकड़े हुए थी। किसान लोग सामन्त की स्वीकृति के बिना मेनर (जागीर) छोड़कर नहीं जा सकते थे।

वाकयात-ए-मुश्ताकी (रिजकुल्लाह मुश्ताकी)

यह सामग्री क्रियेटिव कॉमन्स ऍट्रीब्यूशन/शेयर-अलाइक लाइसेंस के तहत उपलब्ध है;

ख़ुसरो ने इसमें तुगलक वंश के शासन का इतिहास लिखा है। इस किताब में गयासुद्दीन तुग़लक़ की ख़ुसरो खां पर जीत का उल्लेख है, जिसके परिणामस्वरूप तुगलक वंश की स्थापना हुई। इसे आमिर ख़ुसरो की अंतिम ऐतिहासिक कृति माना जाता है।

‘मखजन-ए-अफगाना’ की रचना जहाँगीर के शासनकाल में नियामतुल्ला ने की थी। इसमें नियामतुल्ला ने विभिन्न अफगान कबीलों का सामान्य विवरण दिया है। यह लोदी-युग के इतिहास की जानकारी का एक उपयोगी स्रोत है।

तुर्कों के आगमन के साथ मध्यकालीन भारत की मुद्रा प्रणाली के इतिहास में एक नये चरण का आरंभ हुआ। प्रारंभ में तुर्कों ने पुरानी मुद्रा प्रणाली को बनाये रखा, किंतु बाद में उनका कलात्मक विकास किया। इतिहास के पुनर्निर्माण इन सिक्कों का विशेष महत्त्व रहा है क्योंकि इनसे राज्य की समृद्धि के साथ-साथ साम्राज्य विस्तार का भी ज्ञान होता है।

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